किसी चीज़ को पाने के लिए पूरी शिद्दत के साथ कोशिश कि जाये तो मानकर चलिए आपको कामयाब होने से कोई भी नहीं रोक सकता । इसका उदहारण है संजय अखाड़े । महाराष्ट्र के नासिक जिले के संजय अखाड़े घोर विपन्नता के बावजूद IAS बनने में कामयाब रहे । संजय दृढ़ निश्चय कि जीती जागती मिशाल है । नासिक के मखमलाबाद रोड कि तंग गलियो में बना एक घर, जहा गरीबी, विपन्नता पसरी हुई है जहाँ मुलभुत सुविधाओ का अभाव है उसी गंदे से घर कि चारदीवारी में कुली के बेटे के रूप में जन्मे मेधावी संजय । माँ महीने के तीस दिन आधे पेट रहकर फैक्ट्री में बीड़ी बनती, तब उम्मीद बांधती कि काम से काम बच्चे चाय में डुबोकर डबल रोटी तो खा ही लेंगे । पिता का कोई कसूर नहीं । स्टेशन पर कुली का काम कर रहे और बोरियां उठाते उठाते वह ये भी भूल जाता है कि देर हुई तो बच्चे आज भी भूखे पेट ही सोयेंगे । माता- पिता कि ऐसी हालत देख संजय बचपन से मजदूरी करने लगे ।
कई सालो तक संजय होटलों में टेबल साफ करने, मेडिकल कि दुकान में काम करके, अख़बार बांटकर और STD कि दुकान पर बैठकर अपनी पिता का साथ दिया। पिता ने स्कूल में भी डाला तो इस मकसद से कि वो दिन भर में मिली मजदूरी को गिन सके । लेकिन संजय तो जैसे बने ही कुछ ख़ास करने के लिए थे । स्कूल में मन लगा कर पढ़ते और बाकि बचे समय में मजदूरी कर खुद का पेट पालते । वे खाने पहनने में लोगो से जरूर पीछे रहे लेकिन स्कूल में मन लगाकर पढ़ते में सबसे अव्वल रहे । हर कक्षा में उनका पहला स्थान पक्का था ।संजय मराठी के आलावा कोई भाषा नहीं जानते थे । ऐसे में सुबह बाँटने के बाद बचे हुए अंग्रेजी अखबारों को पढ़कर अपनी अंग्रेजी सुधारी । मुसीबतों से जुझते हुए संजय ने Graduation कि पढाई पूरी कि । और फिर प्रतियोगी परीक्षाओ कि तैयारी में जुट गए । सात दिन मजदूरी करने के बाद जो वक़्त मिलता था संजय उसका पूरी ईमानदारी से इस्तमाल करते । बकौल संजय ” मैंने संघर्ष के दिनों में एक मिनट भी बर्बाद नहीं किया । मै जनता था अगर मैंने वक़्त कि कीमत नहीं पहचानी, तो वक़्त भी मुझे नहीं पहचानेगा ।”
संजय कहते है ‘शुरु-शुरु मे मै हैं भावना से ग्रसित था न मैं दिखने मै अच्छा न मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि मजबूत थी और न ही मुझे अंग्रेजी बोलना आती थी । ऐसे मै होशियार छात्रों का सामना कैसे करूँगा ? लेकिन ज्यो ज्यो पढाई करता गया मेरे आत्मविश्वास के आगे सारी कमियाँ न जाने कहाँ गायब हो गई’ इसी दौरान संजय को मार्गदर्शक के रूप मे पुणे के IAS अविनाश धर्माधिकारी मिले । उन्होंने संजय का न केवल हौसला बढ़ाया, बल्कि कहींग भी कराइ । संजय कि म्हणत और अविनाश का मार्गदर्शन रंग लाया । और संजय संघ लोक सेवा आयोग कि परीक्षा मे सफल हो गई संजय अब आईएएस बन चुके है ।
संजय कहते है ” हालत कितने ही बुरे हो घनघोर गरीबी हो । बावजूद इसके आपकी विल पावर मजबूत हो, आपको हर हाल मे सफल होने कि सनक हो, तो दुनिया कि कोई ताकत आपको कामयाब होने से नहीं रोक सकती । इसलिए मित्रों उठो, जागो और तब तक चैन सिमट बैठो जब तक तुम कामयाब नहीं हो जाओ।’
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